जिस प्रकार सतयुग के भगवान नरसिंह जी है, त्रेता युग के भगवान श्री राम जी है, द्वापरयुग के भगवान श्री कृष्ण जी है, उसी प्रकार कलयुग के साक्षात भगवान जगत के नाथ श्री जगन्नाथ महाप्रभु जी है। जिन्होंने इस कलयुग में अनेकों लीलाएं की और अनेकों भक्तों का उद्धार किया है। आज हम आपको आगामी श्री जगन्नाथ रथ यात्रा के उपलक्ष्य में जगत के नाथ जगन्नाथ महाप्रभु की कलयुग की लीला के बारे में बताएंगे। जो उन्होंने उड़िया वैष्णव भक्तों के भाव से विभोर होकर उनके लिए लीलाएं की थी।
जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 में महाप्रभु की कलयुगी लीला का दिव्य चित्र
प्रेमियों इस वर्ष की आगामी श्री जगन्नाथ महाप्रभु की रथ यात्रा 27 जून को शुरू हो जाएगी और नव दिनों के लिए जगन्नाथ महाप्रभु अपने भाई बहनों के साथ अपने मौसी के यहां रहेंगे, फिर 8 जुलाई ठीक नव दिन बाद जगन्नाथ महाप्रभु अपने भाई बलभद्र और अपनी बहन सुभद्रा के साथ वापस से श्री मंदिर में विराजमन हो जायेंगे। प्रत्यक वर्ष की तरह इस वर्ष भी प्रभु अपने भक्तों को मंदिर से बाहर आकर अपने दर्शनो का लाभ देंगे।
जगन्नाथ महाप्रभु की कलयुग की भाव की लीला
एक कथा के अनुसार जब श्री जगन्नाथ मंदिर में भाव की सेवा होती थी, तो इससे गुरु श्री रामानुजाचार्य को बड़ा अजीब लगाता था। फिर उन्होंने सारी सेवाएं जगन्नाथ मंदिर की अपने नेतृत्व में लेने की ठनी और फिर जगन्नाथ महाप्रभु की वैदिक भाव से सेवा होने लगी। लेकिन जगन्नाथ जी तो चार ही दिन में सेवा से ऊब गए थे, क्योंकि उन्हें तो भाव की सेवा ही पसंद आ गई थी। जो वहां के पंडा उड़िया वैष्णव द्वारा की जा रही थी। जब जगन्नाथ महाप्रभु की सेवा रामानुजाचार्य अपने नेतृत्व में करने लगे तो वहां के जो पंडा थे, उनको भी विधि पूर्वक ही दर्शन मिलते थे। जिसके कारण महाप्रभु विरह में आ गए थ, कि जगन्नाथ महाप्रभु की सेवा करने का सौभाग्य अब कब मिलेगा। नवकलेवर के बाद जब जगन्नाथ महाप्रभु का जो दर्शन होता है, तो उसमें आपको लगेगा कितने पतले से ठाकुर जी हो गए है। लेकिन जैसे - जैसे सेवा होती रहती है तो लगते है कि अब थोड़े मोटे हो गए है इनका वजन थोड़ा सा बढ़ गया है तो रामानुज्याचार्य और उनके सेवकों ने जब सेवा प्रारंभ की तो ऐसा लगता है, कि जगन्नाथ महाप्रभु ने अपने भक्ति के विरह में वजन घटा लिया है। रामानुजाचार्य जी को अनुभव हो गया था कि ठाकुर जी प्रसन्न नहीं है, तो उन्होंने जगन्नाथ महाप्रभु से पूछा- प्रभु क्या हुआ? तो जगन्नाथ जी ने कहा, मुझे अपने उड़िया वैष्णव की याद आती है? वो लोग जैसी मेरी सेवा करते है उसमें मुझे बहुत सुख मिलता है। मुझे उसके आगे वैदिक सेवा में रुचि नहीं आ रही है, मुझे वो भाव की सेवा ज्यादा अच्छी लगती है, तो कृपया आप अपने शिष्यों को लेकर चले जाइए, और उन उड़िया वैष्णवो को ही भेज दीजिए। मुझे उनकी सेवा ही पसंद है, लेकिन रामानुजाचार्य तो आचार्य है और आचार्य का नियम है। वो भगवान को भी डाट सकते है तो उन्होंने जगन्नाथ महाप्रभु से कहा नहीं मैं और मेरे शिष्य ही आपकी सेवा करेंगे। आपकी सेवा में सुबह चार बजे मंगला होती है तो वो चार बजे ही होगी। जो भी सेवा जिस समय में होती है, वह उस समय ही होगी। ठाकुर जी ने बहुत अनुग्रह किया लेकिन रामानुजाचार्य जी नहीं माने, फिर रात्रि में जगन्नाथ महाप्रभु सोचने लगे कि इनको कैसे भेजा जाए। तो रात्रि में जगन्नाथ महाप्रभु सुभद्रा जी और बलभद्र जी के साथ विचार कर रहे थे कि कैसे इन्हें भेजा जाए। लेकिन बलभद्र जी से छुपा कर विचार विमर्श किया जा रहा था। क्योंकि कलयुग में रामानुजाचार्य जी बलभद्र जी का ही अवतार है तो अगर उनको पता चल गया, तो रामानुजाचार्य जी को भी पता चल ही जाएगा। इसलिए जगन्नाथ जी ने मन ही मन विचार किया कि कैसे भेजा जाए रामानुजाचार्य जी को, कुछ समय पश्चात जगन्नाथ जी ने अपने गरुड़ जी को आज्ञा दी कि आप रात को रामानुजाचार्य जी और उनके शिष्यों को अपने ऊपर बैठा कर दक्षिण में छोड़ आइए। और मेरे सब उड़िया वैष्णव भक्तों को यहां ले आइए, तब गरुड़ जी ने ऐसा ही किया।
जब सुबह रामानुजाचार्य और उनके शिष्यों की आंख खुली तो वह दक्षिण में तिरुचिरापल्ली श्री रंगम के पास पहुंच गए थे। वो यह देख घबरा गए, ये कहा आ गए हम जैसे ही थोड़ी देर इधर-उधर देखा तो पता चला वो श्री रंगनाथ भगवान की नगरी में पहुंच गए थे। तब उन्हें पता चला कि हम तो दक्षिण मै श्री रंगनाथ भगवान के पास पहुंच गए है। तब रामानुजाचार्य जी मुस्कुराए और मन ही मन बोले, “खुद ही सारे वेदों का निर्माण किया है और खुद ही उसमें सारी सेवा पद्धति के बारे में बताया है लेकिन खुद ही नहीं मानते”, क्यों - क्योंकि जगन्नाथ भगवान भाव के भूखे है। यह थी जगन्नाथ महाप्रभु की एक भाव की लीला।
भाव ही है असली सेवा का माध्यम
प्रेमियों भगवान भाव के भूखे है चाहे आप कितनी ही धन राशि भगवान को चढ़ावा दे, चाहे आप कितने ही पूजा पाठ करवा ले, जब तक आपके मन में भगवान की सेवा के प्रति भाव नहीं आएगा, तब तक आपकी सेवा स्वीकार नहीं होगी। प्रेमियों भगवान राम ने भाव में सबरी के झूठे बैर स्वीकार कर लिए थे। मेरी आपसे यही विनती है कि, भगवान को कोई भी सेवा हमेशा भाव पूर्वक ही करना चाहिए।
~ श्री जगन्नाथ भगवान की जय हों।
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